जरूरत पड़ी तो यहां हो जाएगी इमरजेंसी लैंडिंग, सेकंड वर्ल्ड वार के समय UP में बना था ये एयरपोर्ट; 84 साल पुरानी कहानी

जरूरत पड़ी तो यहां हो जाएगी इमरजेंसी लैंडिंग, सेकंड वर्ल्ड वार के समय UP में बना था ये एयरपोर्ट; 84 साल पुरानी कहानी

गाजीपुर के अंधऊ गांव में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाई गई एक ऐतिहासिक हवाई पट्टी आज भी मौजूद है. यह ब्रिटिश शासनकाल में रणनीतिक कारणों से बनाई गई थी. आज छोटे विमान और हेलीकॉप्टर यहां उतरते हैं, हालांकि इसका विकास अभी अधूरा है.

युद्ध के समय फाइटर प्लेन और अन्य जहाजों को उतारने के लिए हवाई पट्टी की जरूरत होती है और ऐसी ही जरूरत को समझते हुए ब्रिटिश शासन में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गाजीपुर के अंधऊ गांव में एक हवाई पट्टी का निर्माण कराया था. जो करीब 63 एकड़ में फैली हुई है. हालांकि इस हवाई पट्टी पर अभी तक कोई फाइटर प्लेन की लैंडिंग तो नहीं हुई लेकिन छोटे प्लेन और हेलीकॉप्टर आए दिन इस हेलीपैड पर उतरते हैं. जानकारों की बात माने तो यह हवाई पट्टी तत्कालीन समय में सुरक्षा की दृष्टि से बनाई गई थी.

मौजूदा समय में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ी हुई है और इस जंग में फाइटर प्लेन और विमान की महत्वपूर्ण भूमिका है. यहां तक की भारत ने पाकिस्तान के एयर स्पेस को भी तबाह कर दिया है. बावजूद इसके, इन दिनों लगातार मिसाइल और ड्रोन अटैक के मामले सामने आ रहे हैं. ऐसे में अगर हम गाजीपुर की बात करें तो गाजीपुर में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब पूरा विश्व दो खेमों में बटा हुआ था. उस वक्त जापान भारत के कई इलाकों पर हमला कर रहा था. इस वक्त सैनिकों को राशन और अन्य सामग्री पहुंचाने के उद्देश्य से गाजीपुर में दो हवाई पट्टी ब्रिटिश सरकार के द्वारा इमरजेंसी में की गई थी. जिसमें एक गाजीपुर के अंधऊ गांव में स्थित है जबकि दूसरा मोहम्मदाबाद तहसील के गौसपुर गांव में स्थित है.

सैनिकों को राशन पहुंचाने के लिए हुआ था निर्माण

लेखक एवं साहित्यकार उबैदुर रहमान ने बताया कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान लगातार भारत पर हमला कर रहा था और उस वक्त नेपाल और गोरखपुर एयरवेज नजदीक में था और खासकर बर्मा जो भारत के बगल में ही था. उसी को लेकर हमला किया जा रहा था. ऐसे में ब्रिटिश सरकार इन सभी को ध्यान में रखकर अंधऊ हवाई पट्टी और गौसपुर के पास एक अन्य हवाई पट्टी का निर्माण कराया, जहां पर सैनिकों के लिए राशन सामग्री और अन्य सामग्री भेजी जाए. साथ ही जरूरत पड़ने पर विमान की इमरजेंसी लैंडिंग भी कराई जा सके. उन्होंने बताया कि बर्मा देश पास में होने के कारण भी जापान हमला कर रहा था.

आज तक नहीं उतरा फाइटर जेट

उन्होंने बताया कि इसका निर्माण करीब 1941 ,1942 के आसपास में किया गया था. वहीं जब देश आजाद हुआ तो इसे हवाई पट्टी के रूप में विकसित किया गया. इसी हवाई पट्टी की मदद से आजादी के दीवानों ने ब्रिटिश शासन के अनाज को भी लूटने का काम किया था. दूसरा अंधऊ हवाई पट्टी देश की आजादी के बाद से इसे विकसित किया जाने लगा और यहां पर आए दिन छोटे विमान और हेलीकॉप्टरों के उतरने का क्रम जारी हुआ. इस हवाई पट्टी पर से मऊ बलिया और बिहार की राजनीति करने वाले नेताओं का भी आवागमन होता रहा है. यानी कि यह लोग छोटे विमान और हेलीकॉप्टरों से यहां उतरकर फिर सड़क मार्ग से इन जिलों में जाया करते थे. वहीं मौजूदा समय में देश के बड़े नेता भी छोटे विमान और हेलीकॉप्टर से चुनाव के दरमियान यहीं से आते-जाते हैं.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ था निर्माण

अंधऊ हवाई पट्टी पर अभी तक कोई बड़ा विमान तो नहीं उतरा और ना ही अभी तक कोई फाइटर प्लेन. हालांकि पिछले दिनों गाजीपुर के पूर्व सांसद मनोज सिन्हा के द्वारा इसे विकसित कराए जाने की योजना को अमल में लाया गया था. लेकिन उनके चुनाव हार जाने के बाद मामला ठंडा पड़ गया. इसके अलावा गाजीपुर से राज्यसभा सांसद डॉक्टर संगीता बलवंत ने भी इस हवाई पट्टी को विकसित करने के लिए राज्यसभा में मामला उठा चुकी है.