गरीबी में रोटी का एक निवाला भी था मुश्किल, उसी रोटी ने बनाया लखपति; ‘जीविका दीदी की रसोई’ की अनूठी कहानी

बिहार में 'जीविका दीदी की रसोई' सैकड़ों महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बना रही हैं. घरों में परिवार के लिए रोटी बनाने वाली ये महिलाएं अब एक उद्यम के रूप में रोटी बनाकर कमाई कर रही हैं. इस पहल से न केवल महिलाओं को रोजगार मिला है बल्कि उनके परिवारों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है.
‘रोटी तो हम अपने घरों में रोज बनाते हैं, लेकिन यही रोटी अब बिहार की सैकड़ों महिलाओं की रोजी-रोटी बन गई है’ बिहार की महिलाएं पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है, चूल्हा चौका तक सीमित न रहकर घर चलाने का भार भी उठा रही. दरअसल अपने-अपने घरों में अमूमन हर दिन अपने परिवार के लिए रोटी बनाने वाली महिलाओं के लिए अब रोटी बनाने का कार्य ही उनकी रोजी-रोटी का माध्यम बन गया है.
यह संभव हुआ है जीविका दीदी की रसोई जैसी एक अनूठी पहल की वजह से. इससे संकुल संघ से जुड़ी दीदियों को आजीविका के साधन उपलब्ध होने के साथ ही उनके जीवन में एक बड़ा सकारात्मक बदलाव आया है. बिहार में जीविका दीदी महिला सशक्तिकरण का बेहतर उदाहरण पेश कर रही. रोटी बनाने से लेकर लखपति दीदी बनने का सफर तय कर रही है. भागलपुर में छह रसोइयों में लगभग 90 से अधिक जीविका दीदी काम कर रही है.
महिलाओं का बदल रही स्थिति
यहां से पैसे कमाकर किसी ने अपने बच्चों की शादी कर दी, किसी ने कर्ज चुका दिया तो किसी ने झोपड़ी के मकान को पक्के मकान में बदल दिया. अब सभी महिलाएं खुश है और अपना घर परिवार भी चल रही है. जिले के जवाहर लाल नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय अस्पताल मायगंज में जीविका दीदी की रसोई चल रही है, यहां 46 जीविका दीदियों को न केवल रोजी-रोटी मिल रही है बल्कि इन्होंने अत्यंत गरीबी से निकलकर लखपति दीदी बनने की ओर कदम बढ़ा दिया है.
70 लाख रुपये की हुई फंडिंग
चिराग संकुल स्तरीय संघ की इस अनूठी पहल की बदौलत इन बहनों के चेहरे पर मुस्कान आई है. साथ ही साथ अस्पताल में भर्ती मरीजों को भी अब शुद्ध, पौष्टिक और अच्छी क्वालिटी का भोजन मिलने लगा है. इस रसोई का संचालन चिराग संकुल संघ द्वारा किया जा रहा है. इस कार्य को शुरू करने के लिए चिराग जीविका संकुल संघ के द्वारा पूर्ण सहयोग प्रदान करने के साथ ही इस व्यवसाय के लिए 70 लाख रुपये की फंडिंग भी की है.
दीदियों को प्रतिमाह मिल रहा 10 हजार मेहनताना
दीदी की रसोई में कार्य करने वाली ये दीदियां मेहनताने के रूप में प्रतिमाह 10 हजार रुपये प्राप्त करने के साथ ही इस उद्यम में अपना स्वामित्व भी रखती हैं. अर्थात दीदी की रसोई को होने वाले मुनाफे का हिस्सा भी इन्हें प्राप्त होगा. ऐसे में दीदी की रसोई में कार्य करने वाली इन बहनों ने रोजगार के अवसरों का सृजन करने के साथ-साथ उद्यमिता के क्षेत्र में भी अपना कदम बढ़ाया है. सामूहिक नेतृत्व के साथ शुरू की गई इस पहल के तहत दीदियों ने अपने स्वादिष्ट भोजन, आतिथ्य सत्कार, मिलनसार व्यवहार, खुशमिज़ाज चेहरे से अस्पताल में इलाजरत मरीजों का दिल भी जीता है.
वहीं अपने कुशल प्रबंधन, समयबद्ध भोजन की आपूर्ति तथा साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखते हुए अस्पताल प्रबंधन को भी अपने कामों से प्रभावित किया है. अति आवश्यक सेवा में शुमार मेडिकल सेक्टर में भोजन सेवा प्रदाता के रूप में कार्य करते हुए इन्होंने सफलता की नई मिसाल कायम की है. किसी ने सोचा नहीं होगा कि घर में चौका-चूल्हा संभालने वाली ये बहनें रोटी बनाने जैसे कार्य को उद्यमिता का नया आयाम देकर इसे कामयाबी के इस मुकाम तक पहुंचा पाएंगी.
यही कारण है कि जीविका दीदी की रसोई जैसे चुनौतीपूर्ण कार्य ने इन्हें कामयाबी की बुलंदियों तक पहुंचाया है और उन्हें एक पहचान भी दी है. इससे वह आत्मनिर्भर बनी हैं एवं उनमें आत्मविश्वास आया है. इस कामयाबी से मिले हौसले से अब वे अगले कदम की ओर अग्रसर हैं.